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आप ने आज ये महफ़िल जो सजाई हुई है - अफ़ीफ़ सिराज कविता - Darsaal

आप ने आज ये महफ़िल जो सजाई हुई है

आप ने आज ये महफ़िल जो सजाई हुई है

बात उस की ही फ़क़त बज़्म में छाई हुई है

इस क़दर नाज़ न कीजे कि बुज़ुर्गों ने बहुत

बारहा बज़्म-ए-ख़ुद-आराई सजाई हुई है

इस क़दर शोर है क्यूँ सुर्ख़ी-ए-अख़बार पे आज

जबकि मालूम है हर बात बनाई हुई है

आज तो चैन से रोने दो मुझे गोशे में

एक मुद्दत पे ग़म-ए-दिल से जुदाई हुई है

शर्म मत कीजिए ले लीजे सहारा मेरा

मात हम ने भी बहुत आप से खाई हुई है

आज हम क्यूँ न कहें मोहर-ब-लब क्यूँ रह जाएँ

मय-कदे में बड़ी मुश्किल से रसाई हुई है

आज बे-फ़िक्र बहुत हैं कि कोई बार नहीं

सर्फ़ अर्बाब पे सब दिन की कमाई हुई है

फ़ख़्र ज़ेबा है कि मुद्दत पे कहीं जा के मिरी

अब तलबगार ख़ुदा की ये ख़ुदाई हुई है

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