Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_f828d5dd698aee826e7b4cef59d577da, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
तिलिस्मी ग़ार का दरवाज़ा - आदिल मंसूरी कविता - Darsaal

तिलिस्मी ग़ार का दरवाज़ा

रोज़ आधी रात को

इक तिलिस्मी ग़ार के

ख़ुफ़िया दरवाज़े के सीने में जनम लेती हैं ग़ैबी धड़कनें

ग़ार की गहराई में

चलते हुए संगीत के क़दमों की चाप

रात की अंधी हवा का हाथ पकड़े दूर तक जाती है साथ

एक ज़हरी साँप

खिंच आता है सर की चाह में

लाख ख़तरे हैं ज़रा सी राह में

बंद दरवाज़े के पास

नर्म भीनी घास में

बैठ जाता है वो कुंडली मार के

और अपना फन उठाए

झूमता रहता है सर की तान पर

खेलता रहता है अपनी जान पर

टूटता है जिस घड़ी सर का बहाओ

साँप को आता है ताओ

बंद दरवाज़े पे ग़ुस्सा में पटकता है वो सर

और डस लेता है उस को अपना ज़हरी फन उठा कर

सुब्ह होने तक तो मर जाता है दरवाज़ा

मगर

रोज़ आधी रात को

(779) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Tilismi Ghaar Ka Darwaza In Hindi By Famous Poet Adil Mansuri. Tilismi Ghaar Ka Darwaza is written by Adil Mansuri. Complete Poem Tilismi Ghaar Ka Darwaza in Hindi by Adil Mansuri. Download free Tilismi Ghaar Ka Darwaza Poem for Youth in PDF. Tilismi Ghaar Ka Darwaza is a Poem on Inspiration for young students. Share Tilismi Ghaar Ka Darwaza with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.