पत्थर पर तस्वीर बना कर
पत्थर पर तस्वीर बना कर
पानी में छुप जाता है
सहरा सहरा ख़ाक उड़ाता
जंगल में लहराता है
सूखे पत्तों को खड़काता
सब्ज़े से शरमाता है
सदियों के तारीक खंडर में
जब आवाज़ लगाता है
ला-महदूद ख़ला के लब पर
ख़ामोशी बन जाता है
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