लहू को सुर्ख़ गुलाबों में बंद रहने दो
लहू को सुर्ख़ गुलाबों में बंद रहने दो
शिकस्ता ख़्वाब के शीशों पे उस का अक्स पड़े
सियाह मिट्टी के नीचे सफ़ेद बाल जले
किसी के दाँत मिरी उँगलियाँ चबा जाएँ
ख़ला के ज़ीने से परछाइयाँ उतरने लगें
हर एक लम्हे के चेहरे पे धूप मरने लगे
उदास वक़्त के कंधे पे हाथ रख के चलूँ
बुज़ुर्ग बाप के चेहरे की झुर्रियाँ चूमूँ
ख़मोश हैं दर-ओ-दीवार खिड़कियाँ चुप हैं
गली के मोड़ पे रुक जाए रात का साया
मुझे न रोको मुझे मेरी माँ से मिलने दो
ये मेरे भाई ये बहनें ये हामिला बीवी
लहू को सुर्ख़ गुलाबों में बंद रहने दो
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