दर्द तंहाई की पस्ली से निकल कर आया
दर्द तंहाई की पस्ली से निकल कर आया
रात का हाथ लगा और हवा टूट गई
सूरजी आग में झुलसा गया साया साया
रूह की आँख खुली चाँद शिकस्ता पाया
नीले आकाश के नेज़ों पे सियाही चमकी
वक़्त के जिस्म में लम्हों की कमानें टूटीं
पाँव में फाँस चुभी आँख में रस्ता निकला
दर्द तंहाई की पस्ली से निकल कर आया
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