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सुकून-ए-दिल फ़ना है और मैं हूँ - आदिल हयात कविता - Darsaal

सुकून-ए-दिल फ़ना है और मैं हूँ

सुकून-ए-दिल फ़ना है और मैं हूँ

ग़मों का क़ाफ़िला है और मैं हूँ

कहानी कह रही है रात अपनी

मुक़ाबिल आइना है और मैं हूँ

निसाब-ए-गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर है

सर-ए-रह हादिसा है और मैं हूँ

कहूँ क्या हस्ती-ए-ना-मोतबर हूँ

तिरा ही आसरा है और मैं हूँ

वही नैरंगी-ए-रंग-ए-ज़माना

वही दिल की सदा है और मैं हूँ

अगरचे जिस्म रखता हूँ मैं 'आदिल'

बदन सर से जुदा है और मैं हूँ

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