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नहीं कोई ख़बर करना नहीं है - आदिल हयात कविता - Darsaal

नहीं कोई ख़बर करना नहीं है

नहीं कोई ख़बर करना नहीं है

हमें कुछ भी असर करना नहीं है

बहुत ही ख़ूबसूरत ज़िंदगी है

मगर आसाँ बसर करना नहीं है

हवा को रास्ता गर मिल भी जाए

चराग़ों पर असर करना नहीं है

घरौंदे ही में अपने लौट जाऊँ

कि ख़ुद को दर-ब-दर करना नहीं है

हज़ारों रास्ते तो मुंतज़िर हैं

तख़य्युल में सफ़र करना नहीं है

लुभाते हैं नए पौदे हमें भी

मगर सब को शजर करना नहीं है

हैं अब भी इश्क़ की बातें गवारा

लहू दिल को मगर करना नहीं है

अगर है ज़िंदगी से प्यार 'आदिल'

मुहिम कोई भी सर करना नहीं है

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