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शामिल था ये सितम भी किसी के निसाब में - अदीम हाशमी कविता - Darsaal

शामिल था ये सितम भी किसी के निसाब में

शामिल था ये सितम भी किसी के निसाब में

तितली मिली हनूत पुरानी किताब में

देखूँगा किस तरह से किसी को अज़ाब में

सब के गुनाह डाल दे मेरे हिसाब में

फिर बेवफ़ा को बहर-ए-मोहब्बत समझ लिया

फिर दिल की नाव डूब गई है सराब में

पहले गुलाब उस में दिखाई दिया मुझे

अब वो मुझे दिखाई दिया है गुलाब में

वो रंग-ए-आतिशीं वो दहकता हुआ शबाब

चेहरे ने जैसे आग लगा दी नक़ाब में

बारिश ने अपना अक्स कहीं देखना न हो

क्यूँ आइने उभरने लगे हैं हबाब में

गर्दिश की तेज़ियों ने उसे नूर कर दिया

मिट्टी चमक रही है यही आफ़्ताब में

उस संग-दिल को मैं ने पुकारा तो था 'अदीम'

अपनी सदा ही लौट कर आई जवाब में

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