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किसी झूटी वफ़ा से दिल को बहलाना नहीं आता - अदीम हाशमी कविता - Darsaal

किसी झूटी वफ़ा से दिल को बहलाना नहीं आता

किसी झूटी वफ़ा से दिल को बहलाना नहीं आता

मुझे घर काग़ज़ी फूलों से महकाना नहीं आता

मैं जो कुछ हूँ वही कुछ हूँ जो ज़ाहिर है वो बातिन है

मुझे झूटे दर-ओ-दीवार चमकाना नहीं आता

मैं दरिया हूँ मगर बहता हूँ मैं कोहसार की जानिब

मुझे दुनिया की पस्ती में उतर जाना नहीं आता

ज़र-ओ-माल-ओ-जवाहर ले भी और ठुकरा भी सकता हूँ

कोई दिल पेश करता हो तो ठुकराना नहीं आता

परिंदा जानिब-ए-दाना हमेशा उड़ के आता है

परिंदे की तरफ़ उड़ कर कभी दाना नहीं आता

अगर सहरा में हैं तो आप ख़ुद आए हैं सहरा में

किसी के घर तो चल कर कोई वीराना नहीं आता

हुआ है जो सदा उस को नसीबों का लिखा समझा

'अदीम' अपने किए पर मुझ को पछताना नहीं आता

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