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किस हवाले से मुझे किस का पता याद आया - अदीम हाशमी कविता - Darsaal

किस हवाले से मुझे किस का पता याद आया

किस हवाले से मुझे किस का पता याद आया

हुस्न-ए-काफ़िर को जो देखा तो ख़ुदा याद आया

एक टूटा हुआ पैमान-ए-वफ़ा याद आया

याद आया भी मुझे आज तो क्या याद आया

शाम के हाथ ने जिस वक़्त लगा ली मेहंदी

मुझे उस वक़्त तिरा रंग-ए-हिना याद आया

कहीं आँखों की नमी राज़ न इफ़्शा कर दे

मैं ने मुँह फेर लिया तू जो ज़रा याद आया

सारे फ़नकार उठा लाए थे शहकारों को

और मैं था मुझे अंदाज़ तिरा याद आया

कितनी दुनिया थी मिरे गिर्द तुझे क्या मा'लूम

बड़ी मुश्किल से मुझे तेरा पता याद आया

तेरे दामन में नमी इतनी ज़ियादा क्यूँ है

कौन सा फूल तुझे बाद-ए-सबा याद आया

जब किसी को कोई उम्मीद वफ़ाओं की न थी

मुझे उस पल तिरा पैमान-ए-वफ़ा याद आया

क़दम उठते थे कहाँ सू-ए-हरम अपने 'अदीम'

आज मुश्किल नज़र आई तो ख़ुदा याद आया

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