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जब बयाँ करोगे तुम हम बयाँ में निकलेंगे - अदीम हाशमी कविता - Darsaal

जब बयाँ करोगे तुम हम बयाँ में निकलेंगे

जब बयाँ करोगे तुम हम बयाँ में निकलेंगे

हम ही दास्ताँ बन कर दास्ताँ में निकलेंगे

इश्क़ हो मोहब्बत हो प्यार हो कि चाहत हो

हम तो हर समुंदर के दरमियाँ में निकलेंगे

रात का अंधेरा ही रात में नहीं होता

चाँद और सितारे भी आसमाँ में निकलेंगे

देख तो कभी शब को कारवाँ सितारों का

नूर के कई महमिल कहकशाँ में निकलेंगे

बोलियाँ ज़माने की मुख़्तलिफ़ तो होती हैं

लफ़्ज़ प्यार के लेकिन हर ज़बाँ में निकलेंगे

काट कर बदन सारा क़ाश क़ाश में झांकें

आप के हयूले ही क़ल्ब-ओ-जाँ में निकलेंगे

ख़ाक का समुंदर भी क्या अजब समुंदर है

इस जहाँ में डूबेंगे उस जहाँ में निकलेंगे

क़िस्सा-ए-सुख़न-गोई जब 'अदीम' आएगा

हम भी वाक़िआ बन कर दास्ताँ में निकलेंगे

सिर्फ़ सब्ज़ पत्ते ही पेड़ पर नहीं होते

कुछ न कुछ परिंदे भी आशियाँ में निकलेंगे

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