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इक पल बग़ैर देखे उसे क्या गुज़र गया - अदीम हाशमी कविता - Darsaal

इक पल बग़ैर देखे उसे क्या गुज़र गया

इक पल बग़ैर देखे उसे क्या गुज़र गया

ऐसे लगा कि एक ज़माना गुज़र गया

सब के लिए बुलंद रहे हाथ उम्र भर

अपने लिए दुआओं का लम्हा गुज़र गया

कोई हुजूम-ए-दहर में करता रहा तलाश

कोई रह-ए-हयात से तन्हा गुज़र गया

मिलना तो ख़ैर उस को नसीबों की बात है

देखे हुए भी उस को ज़माना गुज़र गया

दिल यूँ कटा हुआ है किसी की जुदाई में

जैसे किसी ज़मीन से दरिया गुज़र गया

इस बात का मलाल बहुत है मुझे 'अदीम'

वो मेरे सामने से अकेला गुज़र गया

हम देखने का ढंग समझते रहे 'अदीम'

इतने में ज़िंदगी का तमाशा गुज़र गया

बाक़ी बस एक नाम-ए-ख़ुदा रह गया 'अदीम'

सब कुछ बहा के वक़्त का दरिया गुज़र गया

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