इक पल बग़ैर देखे उसे क्या गुज़र गया
इक पल बग़ैर देखे उसे क्या गुज़र गया
ऐसे लगा कि एक ज़माना गुज़र गया
सब के लिए बुलंद रहे हाथ उम्र भर
अपने लिए दुआओं का लम्हा गुज़र गया
कोई हुजूम-ए-दहर में करता रहा तलाश
कोई रह-ए-हयात से तन्हा गुज़र गया
मिलना तो ख़ैर उस को नसीबों की बात है
देखे हुए भी उस को ज़माना गुज़र गया
दिल यूँ कटा हुआ है किसी की जुदाई में
जैसे किसी ज़मीन से दरिया गुज़र गया
इस बात का मलाल बहुत है मुझे 'अदीम'
वो मेरे सामने से अकेला गुज़र गया
हम देखने का ढंग समझते रहे 'अदीम'
इतने में ज़िंदगी का तमाशा गुज़र गया
बाक़ी बस एक नाम-ए-ख़ुदा रह गया 'अदीम'
सब कुछ बहा के वक़्त का दरिया गुज़र गया
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