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बड़ा वीरान मौसम है कभी मिलने चले आओ - अदीम हाशमी कविता - Darsaal

बड़ा वीरान मौसम है कभी मिलने चले आओ

बड़ा वीरान मौसम है कभी मिलने चले आओ

हर इक जानिब तिरा ग़म है कभी मिलने चले आओ

हमारा दिल किसी गहरी जुदाई के भँवर में है

हमारी आँख भी नम है कभी मिलने चले आओ

मिरे हमराह गरचे दूर तक लोगों की रौनक़ है

मगर जैसे कोई कम है कभी मिलने चले आओ

तुम्हें तो इल्म है मेरे दिल-ए-वहशी के ज़ख़्मों को

तुम्हारा वस्ल मरहम है कभी मिलने चले आओ

अँधेरी रात की गहरी ख़मोशी और तन्हा दिल

दिए की लौ भी मद्धम है कभी मिलने चले आओ

तुम्हारे रूठ के जाने से हम को ऐसा लगता है

मुक़द्दर हम से बरहम है कभी मिलने चले आओ

हवाओं और फूलों की नई ख़ुशबू बताती है

तिरे आने का मौसम है कभी मिलने चले आओ

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