बख़्शे फिर उस निगाह ने अरमाँ नए नए
बख़्शे फिर उस निगाह ने अरमाँ नए नए
महसूस हो रहे हैं दिल ओ जाँ नए नए
यूँ क़ैद-ए-ज़िंदगी ने रखा मुज़्तरिब हमें
जैसे हुए हों दाख़िल-ए-ज़िंदाँ नए नए
किस किस से इस अमानत-ए-दीं को बचाइए
मिलते हैं रोज़ दुश्मन-ए-ईमाँ नए नए
राहत की जुस्तुजू में ख़ुशी की तलाश में
ग़म पालती है उम्र-ए-गुरेज़ाँ नए नए
मस्जिद में और ज़िक्र बुतों का जनाब-ए-शैख़
शायद हुए हैं आप मुसलमाँ नए नए
दम भर दम-ए-अजल को न हासिल हुआ फ़राग़
होते रहे चराग़ फ़रोज़ाँ नए नए
ख़ाना-ख़राब हम से जहाँ में कहाँ 'अदीब'
आबाद कर रहे हैं बयाबाँ नए नए
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