न बाम-ओ-दश्त न दरिया न कोहसार मिले
न बाम-ओ-दश्त न दरिया न कोहसार मिले
जुनूँ की राह थी हालात साज़गार मिले
लबों पे हर्फ़-ए-शिकायत भी आ के टूट गया
वो ख़ुद फ़िगार थे जो हाथ संग-बार मिले
उधर फ़सील-ए-शब-ए-ग़म इधर है शहर-ए-पनाह
सबा से कहियो वहीं आ के एक बार मिले
ये बेबसी तो मिरे अहद का मुक़द्दर थी
दिलों को दाग़-ए-तमन्ना भी मुस्तआ'र मिले
हथेलियों पे चराग़-ए-दुआ सजाए हुए
मिले निगार-ए-बहाराँ तो शर्मसार मिले
कोई तो राह-ए-तमन्ना में हम-सफ़र होता
कोई तो कू-ए-वफ़ा में ख़ता-शिआर मिले
मोहब्बतों से तो पहले ही क्या तवक़्क़ो थी
मुरव्वतों के भी दामान तार तार मिले
मैं कैसे अपने ख़द्द-ओ-ख़ाल आज पहचानूँ
जो आईना मिले आलूदा-ए-ग़ुबार मिले
मिरी तलब की ये मेराज है कि इज्ज़ 'अदा'
जिधर से गुज़रूँ वही एक रहगुज़ार मिले
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