Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_b01cd136357b6d7887aa061c3f9ba554, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
कोई संग-ए-रह भी चमक उठा तो सितारा-ए-सहरी कहा - अदा जाफ़री कविता - Darsaal

कोई संग-ए-रह भी चमक उठा तो सितारा-ए-सहरी कहा

कोई संग-ए-रह भी चमक उठा तो सितारा-ए-सहरी कहा

मिरी रात भी तिरे नाम थी उसे किस ने तीरा-शबी कहा

मिरे रोज़ ओ शब भी अजीब थे न शुमार था न हिसाब था

कभी उम्र भर की ख़बर न थी कभी एक पल को सदी कहा

मुझे जानता भी कोई न था मिरे बे-नियाज़ तिरे सिवा

न शिकस्त-ए-दिल न शिकस्त-ए-जाँ कि तिरी ख़ुशी को ख़ुशी कहा

कोई याद आ भी गई तो क्या कोई ज़ख़्म खिल भी उठा तो क्या

जो सबा क़रीब से हो चली उसे मिन्नतों की घड़ी कहा

भरी दोपहर में जो पास थी वो तिरे ख़याल की छाँव थी

कभी शाख़-ए-गुल से मिसाल दी कभी उस को सर्व-ए-समनी कहा

कहीं संग-ए-रह कहीं संग-ए-दर कि मैं पत्थरों के नगर में हूँ

ये नहीं कि दिल को ख़बर न थी ये बता कि मुँह से कभी कहा

मिरे हर्फ़ हर्फ़ के हाथ में सभी आइनों की हैं किर्चियाँ

जो ज़बाँ से हो न सका 'अदा' ब-हुदूद-ए-बे-सुख़नी कहा

(1032) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Koi Sang-e-rah Bhi Chamak UTha To Sitara-e-sahari Kaha In Hindi By Famous Poet Ada Jafri. Koi Sang-e-rah Bhi Chamak UTha To Sitara-e-sahari Kaha is written by Ada Jafri. Complete Poem Koi Sang-e-rah Bhi Chamak UTha To Sitara-e-sahari Kaha in Hindi by Ada Jafri. Download free Koi Sang-e-rah Bhi Chamak UTha To Sitara-e-sahari Kaha Poem for Youth in PDF. Koi Sang-e-rah Bhi Chamak UTha To Sitara-e-sahari Kaha is a Poem on Inspiration for young students. Share Koi Sang-e-rah Bhi Chamak UTha To Sitara-e-sahari Kaha with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.