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दीप था या तारा क्या जाने - अदा जाफ़री कविता - Darsaal

दीप था या तारा क्या जाने

दीप था या तारा क्या जाने

दिल में क्यूँ डूबा क्या जाने

गुल पर क्या कुछ बीत गई है

अलबेला झोंका क्या जाने

आस की मैली चादर ओढ़े

वो भी था मुझ सा क्या जाने

रीत भी अपनी रुत भी अपनी

दिल रस्म-ए-दुनिया क्या जाने

उँगली थाम के चलने वाला

नगरी का रस्ता क्या जाने

कितने मोड़ अभी बाक़ी हैं

तुम जानो साया क्या जाने

कौन खिलौना टूट गया है

बालक बे-परवा क्या जाने

ममता ओट दहकते सूरज

आँखों का तारा क्या जाने

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