अदा जाफ़री कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अदा जाफ़री (page 2)
नाम | अदा जाफ़री |
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अंग्रेज़ी नाम | Ada Jafri |
जन्म की तारीख | 1924 |
मौत की तिथि | 2015 |
जन्म स्थान | Karachi |
ज़बाँ को हुक्म निगाह-ए-करम को पहचाने
ये हुक्म है तिरी राहों में दूसरा न मिले
यही नहीं कि ज़ख़्म-ए-जाँ को चारा-जू मिला नहीं
वो लम्हा कि ख़ामोशी-ए-शब नग़्मा-सरा थी
वैसे ही ख़याल आ गया है
वही ना-सबूरी-ए-आरज़ू वही नक़्श-ए-पा वही जादा है
उजाला दे चराग़-ए-रहगुज़र आसाँ नहीं होता
तौफ़ीक़ से कब कोई सरोकार चले है
शायद अभी है राख में कोई शरार भी
रोज़-ओ-शब की कोई सूरत तो बना कर रख्खूँ
निगाह ओट रहूँ कासा-ए-ख़बर में रहूँ
न बाम-ओ-दश्त न दरिया न कोहसार मिले
मुझे रंग-ए-ख़्वाब से ज़िंदगी का यक़ीं मिला
मिज़ाज-ओ-मर्तबा-ए-चश्म-ए-नम को पहचाने
क्या जानिए किस बात पे मग़रूर रही हूँ
कोई संग-ए-रह भी चमक उठा तो सितारा-ए-सहरी कहा
ख़ुद हिजाबों सा ख़ुद जमाल सा था
ख़ामुशी से हुई फ़ुग़ाँ से हुई
ख़लिश-ए-तीर-ए-बे-पनाह गई
काँटा सा जो चुभा था वो लौ दे गया है क्या
कहते हैं कि अब हम से ख़ता-कार बहुत हैं
जो चराग़ सारे बुझा चुके उन्हें इंतिज़ार कहाँ रहा
जब दिल की रहगुज़र पे तिरा नक़्श-ए-पा न था
होंटों पे कभी उन के मिरा नाम ही आए
हिस नहीं तड़प नहीं बाब-ए-अता भी क्यूँ खुले
हर गाम सँभल सँभल रही थी
हर इक दरीचा किरन किरन है जहाँ से गुज़रे जिधर गए हैं
हाल खुलता नहीं जबीनों से
गुलों सी गुफ़्तुगू करें क़यामतों के दरमियाँ
गुलों को छू के शमीम-ए-दुआ नहीं आई