फूल का या संग का इज़हार कर
फूल का या संग का इज़हार कर
आसमाँ औरंग का इज़हार कर
जिस्म के रौज़न से पहले ख़ुद निकल
फिर क़बा-ए-तंग का इज़हार कर
फूल की पत्ती पे कोई ज़ख़्म डाल
आइने में रंग का इज़हार कर
आबगीनों में सियाही भर के चल
दोस्ती में जंग का इज़हार कर
धूल से अन्फ़ास के पैकर तराश
ख़ुशबुओं में रंग का इज़हार कर
पढ़ रहा था मैं क़सीदा नाम का
कोई बोला नंग का इज़हार कर
कौन कितना आदमी है ये बता
आह में आहंग का इज़हार कर
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