तेग़-ए-जफ़ा को तेरी नहीं इम्तिहाँ से रब्त

तेग़-ए-जफ़ा को तेरी नहीं इम्तिहाँ से रब्त

मेरी सुबुक-सरी को है बार-ए-गराँ से रब्त

दुनिया को हम से काम न दुनिया से हम को काम

ख़ातिर से तेरी रखते हैं सारे-जहाँ से रब्त

उड़ते ही गर्द जाती है जो सू-ए-आसमाँ

है कुछ न कुछ ज़मीन को भी आसमाँ से रब्त

इज़हार-ए-हाल के लिए सूरत सवाल है

है गुफ़्तुगू से काम न हम को ज़बाँ से रब्त

चश्मे की तरह रहती हैं जारी मुदाम ये

आँखों को हो गया है जो आब-ए-रवाँ से रब्त

बे-रब्तियों ने 'क़द्र' मिटाई जो रब्त की

है गोश्त को भी अपने न अब उस्तुख़्वाँ से रब्त

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Tegh-e-jafa Ko Teri Nahin Imtihan Se Rabt In Hindi By Famous Poet Abu Zahid Sayyad Yahya Husaini Qadr. Tegh-e-jafa Ko Teri Nahin Imtihan Se Rabt is written by Abu Zahid Sayyad Yahya Husaini Qadr. Complete Poem Tegh-e-jafa Ko Teri Nahin Imtihan Se Rabt in Hindi by Abu Zahid Sayyad Yahya Husaini Qadr. Download free Tegh-e-jafa Ko Teri Nahin Imtihan Se Rabt Poem for Youth in PDF. Tegh-e-jafa Ko Teri Nahin Imtihan Se Rabt is a Poem on Inspiration for young students. Share Tegh-e-jafa Ko Teri Nahin Imtihan Se Rabt with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.