रह-ए-वफ़ा में उन्हीं की ख़ुशी की बात करो
रह-ए-वफ़ा में उन्हीं की ख़ुशी की बात करो
वो ज़िंदगी हैं तो फिर ज़िंदगी की बात करो
फ़ुग़ान-ए-नीम-शबी ज़ीस्त तक रहे क़ाएम
हयात सोज़-ए-जिगर है इसी की बात करो
निज़ाम-ए-हुस्न से वाक़िफ़ हो फिर वफ़ा कैसी
उन्हीं पे मिट के नई ज़िंदगी की बात करो
ज़बान-ए-क़ाल को दे कर सुकूत का पैग़ाम
ज़बान-ए-हाल से पैहम उसी की बात करो
करम है उन का जो हो जाए 'वासिल'-ए-जानाँ
वहाँ ख़ुदी की न कुछ बे-ख़ुदी की बात करो
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