सब की आँखों में जो समाया था
सब की आँखों में जो समाया था
कौन था वो कहाँ से आया था
किस ने की आज पुर्सिश-ए-अहवाल
कोई अपना था या पराया था
मिट गए हम तो ये हुआ मालूम
भूल कर कोई मुस्कुराया था
एक लज़्ज़त थी ख़ुद-फ़रेबी में
वर्ना किस ने फ़रेब खाया था
आ गईं याद फिर वही बातें
कल ब-मुश्किल जिन्हें भुलाया था
सब थे आसेब-ए-बज़्म के मारे
हम पे तन्हाइयों का साया था
उम्र गुज़री 'सहर' मोहब्बत में
हम ने दिल कुछ अजीब पाया था
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