ख़्वाबों का नश्शा है न तमन्ना का सिलसिला
ख़्वाबों का नश्शा है न तमन्ना का सिलसिला
अब रह गया है बस ग़म-ए-दुनिया का सिलसिला
आबाद दूर दूर हैं वीराँ से कुछ मक़ाम
ये बस्तियाँ हैं या कोई सहरा का सिलसिला
गर्दिश में जान-ओ-दिल हों तो क्यूँकर मिले सुकूँ
यारो नहीं ये साग़र-ओ-मीना का सिलसिला
दो ही क़दम चले थे किसी की तलाश में
फिर मिल सका न नक़्श-ए-कफ़-ए-पा का सिलसिला
इंसाँ को सिलसिलों से मिलेगी नजात क्या
दुनिया के ब'अद है अभी उक़्बा का सिलसिला
अपने वजूद से भी गिले पर हुआ तमाम
इतना बढ़ा शिकायत-ए-बेजा का सिलसिला
इक शहर-ए-तिश्ना-काम में जीते हैं यूँ 'सहर'
आता है रोज़ ख़्वाब में दरिया का सिलसिला
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