यारो हमारा हाल सजन सीं बयाँ करो
ऐसी तरह करो कि उसे मेहरबाँ करो
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वस्ल की अर्ज़ का जब वक़्त कभी पाता हूँ
ख़ुदावंदा करम कर फ़ज़्ल कर अहवाल पर मेरे
ग़म सीं अहल-ए-बैत के जी तो तिरा कुढ़ता नहीं
मुफ़्लिसी सीं अब ज़माने का रहा कुछ हाल नईं
क्या शोख़ अचपले हैं तेरे नयन ममोला
जब कि ऐसा हो गंदुमी माशूक़
क़द सर्व चश्म नर्गिस रुख़ गुल दहान ग़ुंचा
हुस्न पर है ख़ूब-रूयाँ में वफ़ा की ख़ू नहीं
ख़ुदा के वास्ते ऐ यार हम सीं आ मिल जा
जंगल के बीच वहशत घर में जफ़ा ओ कुल्फ़त
कोयल नीं आ के कोक सुनाई बसंत रुत
दूर ख़ामोश बैठा रहता हूँ