उस वक़्त जान प्यारे हम पावते हैं जी सा
लगता है जब बदन से तैरे बदन हमारा
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बोसे में होंट उल्टा आशिक़ का काट खाया
हो गए हैं पैर सारे तिफ़्ल-ए-अश्क
तवाफ़-ए-काबा-ए-दिल कर नियाज़-ओ-ख़ाकसारी सीं
तुम्हारे लोग कहते हैं कमर है
क्यूँ मलामत इस क़दर करते हो बे-हासिल है ये
हम नीं सजन सुना है उस शोख़ के दहाँ है
जब कि ऐसा हो गंदुमी माशूक़
निगह तेरी का इक ज़ख़्मी न तन्हा दिल हमारा है
नालाँ हुआ है जल कर सीने में मन हमारा
रखे कोई इस तरह के लालची को कब तलक बहला
सैर-ए-बहार-ए-हुस्न ही अँखियों का काम जान
तुम्हारी देख कर ये ख़ुश-ख़िरामी आब-रफ़्तारी