तुम नज़र क्यूँ चुराए जाते हो
जब तुम्हें हम सलाम करते हैं
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ख़ुदा के वास्ते ऐ यार हम सीं आ मिल जा
जंगल के बीच वहशत घर में जफ़ा ओ कुल्फ़त
किस की रखती हैं ये मजाल अँखियाँ
तवाफ़-ए-काबा-ए-दिल कर नियाज़-ओ-ख़ाकसारी सीं
कहो तुम किस सबब रूठे हो प्यारे बे-गुनह हम सीं
उस वक़्त दिल पे क्यूँके कहूँ क्या गुज़र गया
डर ख़ुदा सीं ख़ूब नईं ये वक़्त-ए-क़त्ल-ए-आम कूँ
जाल में जिस के शौक़ आई है
तुम्हारी देख कर ये ख़ुश-ख़िरामी आब-रफ़्तारी
याद-ए-ख़ुदा कर बंदे यूँ नाहक़ उम्र कूँ खोना क्या
अब दीन हुआ ज़माना-साज़ी