तिरे रुख़सारा-ए-सीमीं पे मारा ज़ुल्फ़ ने कुंडल
लिया है अज़दहा नीं छीन यारो माल आशिक़ का
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चंचलाहट में तू ममोला है
क्यूँ न आ कर उस के सुनने को करें सब यार भीड़
किस की रखती हैं ये मजाल अँखियाँ
क़यामत राग ज़ालिम भाव काफ़िर गत है ऐ पन्ना
साँप सर मार अगर जो जावे मर
इक अर्ज़ सब सीं छुप कर करनी है हम कूँ तुम सीं
सर कूँ अपने क़दम बना कर के
नमकीं गोया कबाब हैं फीके शराब के
इश्क़ है इख़्तियार का दुश्मन
वस्ल की अर्ज़ का जब वक़्त कभी पाता हूँ
कहें क्या तुम सूँ बे-दर्द लोगो किसी से जी का मरम न पाया
ग़म के पीछो रास्त कहते हैं कि शादी होवे है