तिरा क़द सर्व सीं ख़ूबी में चढ़ है
लटक सुम्बुल सेती ज़ुल्फ़ाँ सीं बढ़ है
Mir Taqi Mir
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ज़िंदगानी सराब की सी तरह
गरचे इस बुनियाद-ए-हस्ती के अनासिर चार हैं
शौक़ बढ़ता है मिरे दिल का दिल-अफ़गारों के बीच
कहें क्या तुम सूँ बे-दर्द लोगो किसी से जी का मरम न पाया
आज यारों को मुबारक हो कि सुब्ह-ए-ईद है
मेहराब-ए-अबरुवाँ कूँ वसमा हुआ है ज़ेवर
यारो हमारा हाल सजन सीं बयाँ करो
और वाइज़ के साथ मिल ले शैख़
डर ख़ुदा सीं ख़ूब नईं ये वक़्त-ए-क़त्ल-ए-आम कूँ
सर कूँ अपने क़दम बना कर के
जाल में जिस के शौक़ आई है