मिल गईं आपस में दो नज़रें इक आलम हो गया
जो कि होना था सो कुछ अँखियों में बाहम हो गया
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Gulzar
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
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मगर तुम सीं हुआ है आश्ना दिल
तुम्हारे लोग कहते हैं कमर है
मत मेहर सेती हाथ में ले दिल हमारे कूँ
फ़ानी-ए-इश्क़ कूँ तहक़ीक़ कि हस्ती है कुफ़्र
हुआ है हिन्द के सब्ज़ों का आशिक़
कहो तुम किस सबब रूठे हो प्यारे बे-गुनह हम सीं
दिल्ली के बीच हाए अकेले मरेंगे हम
किस की रखती हैं ये मजाल अँखियाँ
बोसे में होंट उल्टा आशिक़ का काट खाया
इश्क़ की सफ़ मनीं नमाज़ी सब
कनहय्या की तरह प्यारे तिरी अँखियाँ ये साँवरियाँ
मत ग़ज़ब कर छोड़ दे ग़ुस्सा सजन