क्यूँ तिरी थोड़ी सी गर्मी सीं पिघल जावे है जाँ
क्या तू नें समझा है आशिक़ इस क़दर है मोम का
Allama Iqbal
Anwar Masood
Gulzar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(881) Peoples Rate This
कम मत गिनो ये बख़्त-सियाहों का रंग-ए-ज़र्द
क़यामत राग ज़ालिम भाव काफ़िर गत है ऐ पन्ना
तिरा क़द सर्व सीं ख़ूबी में चढ़ है
साथ मेरे तेरे जो दुख था सो प्यारे ऐश था
तीरा-रंगों के हुआ हक़ में ये तप करना दवा
रोवने नीं मुझ दिवाने के किया सियानों का काम
दाग़ सीं क्यूँ न दिल उजाला हो
ये तिरी दुश्नाम के पीछे हँसी गुलज़ार सी
अब दीन हुआ ज़माना-साज़ी
सैर-ए-बहार-ए-हुस्न ही अँखियों का काम जान
दिल्ली के बीच हाए अकेले मरेंगे हम
उस ज़ुल्फ़-ए-जाँ कूँ सनम की बला कहो