क्यूँ कर बड़ा न जाने मुंकिर नपे को अपने
इंकार उस का नाना और शैख़ है नवासा
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याद-ए-ख़ुदा कर बंदे यूँ नाहक़ उम्र कूँ खोना क्या
रोवने नीं मुझ दिवाने के किया सियानों का काम
तुम्हारी जब सीं आई हैं सजन दुखने को लाल अँखियाँ
क्यूँ बंद सब खुले हैं क्यूँ चीर अटपटा है
जलता है अब तलक तिरी ज़ुल्फ़ों के रश्क से
उस वक़्त जान प्यारे हम पावते हैं जी सा
निगह तेरी का इक ज़ख़्मी न तन्हा दिल हमारा है
मिल गया था बाग़ में माशूक़ इक नक-दार सा
जाल में जिस के शौक़ आई है
दिखाई ख़्वाब में दी थी टुक इक मुँह की झलक हम कूँ
आया है सुब्ह नींद सूँ उठ रसमसा हुआ
शौक़ बढ़ता है मिरे दिल का दिल-अफ़गारों के बीच