कम मत गिनो ये बख़्त-सियाहों का रंग-ए-ज़र्द
सोना वही जो होवे कसौटी कसा हुआ
Ahmad Faraz
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Gulzar
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तुम्हारे लोग कहते हैं कमर है
ग़म के पीछो रास्त कहते हैं कि शादी होवे है
दिल्ली में दर्द-ए-दिल कूँ कोई पूछता नहीं
गुनाहगारों की उज़्र-ख़्वाही हमारे साहिब क़ुबूल कीजे
डर ख़ुदा सीं ख़ूब नईं ये वक़्त-ए-क़त्ल-ए-आम कूँ
यारो हमारा हाल सजन सीं बयाँ करो
जो कि बिस्मिल्लाह कर खाए तआम
निगह तेरी का इक ज़ख़्मी न तन्हा दिल हमारा है
इश्क़ है इख़्तियार का दुश्मन
फिरते थे दश्त दश्त दिवाने किधर गए
यूँ 'आबरू' बनावे दिल में हज़ार बातें
ऐ सर्द-मेहर तुझ सीं ख़ूबाँ जहाँ के काँपे