हो गए हैं पैर सारे तिफ़्ल-ए-अश्क
गिर्या का जारी है अब लग सिलसिला
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निगह तेरी का इक ज़ख़्मी न तन्हा दिल हमारा है
पलंग कूँ छोड़ ख़ाली गोद सीं जब उठ गया मीता
किया है चाक दिल तेग़-ए-तग़ाफ़ुल सीं तुझ अँखियों नीं
रोवने नीं मुझ दिवाने के किया सियानों का काम
ये सब्ज़ा और ये आब-ए-रवाँ और अब्र ये गहरा
साथ मेरे तेरे जो दुख था सो प्यारे ऐश था
बढ़े है दिन-ब-दिन तुझ मुख की ताब आहिस्ता आहिस्ता
मिल गईं आपस में दो नज़रें इक आलम हो गया
ऐ सर्द-मेहर तुझ सीं ख़ूबाँ जहाँ के काँपे
तुझ हुस्न के बाग़ में सिरीजन
क्या सबब तेरे बदन के गर्म होने का सजन
देखो तो जान तुम कूँ मनाते हैं कब सेती