इक अर्ज़ सब सीं छुप कर करनी है हम कूँ तुम सीं
राज़ी हो गर कहो तो ख़ल्वत में आ के कर जाँ
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ये बाव क्या फिरी कि तिरी लट पलट गई
गली अकेली है प्यारे अँधेरी रातें हैं
सरसों लगा के पाँव तलक दिल हुआ हूँ मैं
कमाँ हुआ है क़द अबरू के गोशा-गीरों का
रोवने नीं मुझ दिवाने के किया सियानों का काम
ज़िंदगानी सराब की सी तरह
ख़ुदा के वास्ते ऐ यार हम सीं आ मिल जा
दिवाने दिल कूँ मेरे शहर सें हरगिज़ नहीं बनती
हम नीं सजन सुना है उस शोख़ के दहाँ है
हुआ है हिन्द के सब्ज़ों का आशिक़
दिल कब आवारगी को भूला है
मगर तुम सीं हुआ है आश्ना दिल