बोसाँ लबाँ सीं देने कहा कह के फिर गया
प्याला भरा शराब का अफ़्सोस गिर गया
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ये तिरी दुश्नाम के पीछे हँसी गुलज़ार सी
तिरे रुख़सारा-ए-सीमीं पे मारा ज़ुल्फ़ ने कुंडल
तुम्हारे लोग कहते हैं कमर है
ग़म के पीछो रास्त कहते हैं कि शादी होवे है
साथ मेरे तेरे जो दुख था सो प्यारे ऐश था
दिल्ली के बीच हाए अकेले मरेंगे हम
फिरते थे दश्त दश्त दिवाने किधर गए
मैं निबल तन्हा न इस दुनिया की सोहबत सीं हुआ
नमकीं गोया कबाब हैं फीके शराब के
दाग़ सीं क्यूँ न दिल उजाला हो
यूँ 'आबरू' बनावे दिल में हज़ार बातें
गरचे इस बुनियाद-ए-हस्ती के अनासिर चार हैं