अगर देखे तुम्हारी ज़ुल्फ़ ले डस
उलट जावे कलेजा नागनी का
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दिल्ली के बीच हाए अकेले मरेंगे हम
मुफ़्लिसी सीं अब ज़माने का रहा कुछ हाल नईं
क्या बुरी तरह भौं मटकती है
निगह तेरी का इक ज़ख़्मी न तन्हा दिल हमारा है
यूँ 'आबरू' बनावे दिल में हज़ार बातें
वस्ल की अर्ज़ का जब वक़्त कभी पाता हूँ
ज़िंदगानी सराब की सी तरह
कम मत गिनो ये बख़्त-सियाहों का रंग-ए-ज़र्द
फिरते थे दश्त दश्त दिवाने किधर गए
हुस्न पर है ख़ूब-रूयाँ में वफ़ा की ख़ू नहीं
ये सब्ज़ा और ये आब-ए-रवाँ और अब्र ये गहरा