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क़यामत राग ज़ालिम भाव काफ़िर गत है ऐ पन्ना - आबरू शाह मुबारक कविता - Darsaal

क़यामत राग ज़ालिम भाव काफ़िर गत है ऐ पन्ना

क़यामत राग ज़ालिम भाव काफ़िर गत है ऐ पन्ना

तुम्हारे हुस्न सो देखे सो इक आफ़त है ऐ पन्ना

सुघड़ जितने हैं ये ये सब तुझी को प्यार करते हैं

सियाने सौ है पर उन सौ की इक ही मत है ऐ पन्ना

लगा जाती है अपना दाँव और मेरा बचा जाती

तू अपने काम में बाँकैत और रावत है ऐ पन्ना

तिरी कंचन बरन सी देह जिस की गोद में होवे

उसे दुनिया के अय्याशों में क्या दौलत है ऐ पन्ना

नहीं लेती हमारा नाम हम कूँ याँ तलक भूली

तुझे हम और कुछ अब क्या कहें रहमत है ऐ पन्ना

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