नाज़नीं जब ख़िराम करते हैं
नाज़नीं जब ख़िराम करते हैं
तब क़यामत का काम करते हैं
गुल पे जूँ ओस यूँ तिरे मुख पर
टूट दिल अज़दहाम करते हैं
तुम नज़र क्यूँ चुराए जाते हो
जब तुम्हें हम सलाम करते हैं
क्या तमाशा है जब कि दो माशूक़
मिल के बाहम कलाम करते हैं
मोमिनों के दिलों को ये बद-केश
काफ़िरी कर के राम करते हैं
इश्क़ की सफ़ मनीं नमाज़ी सब
'आबरू' को इमाम करते हैं
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