नालाँ हुआ है जल कर सीने में मन हमारा
नालाँ हुआ है जल कर सीने में मन हमारा
पिंजरे में बोलता है गर्म आज अगन हमारा
पीरी कमान की ज्यूँ माने नहीं अकड़ कूँ
है ज़ोफ़ बीच दूना अब बाँकपन हमारा
चलता है जीव जिस पर जाते हैं उस के पीछे
सौदे में इश्क़ के है अब ये चलन हमारा
मिलने की हिकमतें सब आती हैं हम को इक इक
गो बू-अली हो लौंडा खाता है फ़न हमारा
मज्लिस में आशिक़ों की और ही बहार हो जा
आवे जभी रंगीला गुल-पैरहन हमारा
इस वक़्त जान प्यारे हम पावते हैं जी सा
लगता है जब बदन से तेरे बदन हमारा
ये मुस्कुराओना है तो किस तरह जियूँगा
तुम को तो ये हँसी है पर है मरन हमारा
इज़्ज़त है जौहरी की जो क़ीमती हो गौहर
है 'आबरू' हमन कूँ जग में सुख़न हमारा
(766) Peoples Rate This