हुस्न पर है ख़ूब-रूयाँ में वफ़ा की ख़ू नहीं

हुस्न पर है ख़ूब-रूयाँ में वफ़ा की ख़ू नहीं

फूल हैं ये सब प इन फूलों में हरगिज़ बू नहीं

हुस्न है ख़ूबी है सब तुझ में प इक उल्फ़त नहीं

और सब कुछ है प जो हम चाहते हैं सो नहीं

घर उजाला तुम कूँ करना हो अगर एहसान का

तो दिया जो कुछ के हो फिर नाम उस का लो नहीं

बात जो हम चाहते हैं सो तो है तुम में सजन

बे-दहन कहते हैं तू क्या डर कि तुम को गो नहीं

'आबरू' है उस कूँ क्यूँ-कर इस तरह का जानिए

तुम तो कहते हो पर ऐसा काम उस सीं हो नहीं

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