गरचे इस बुनियाद-ए-हस्ती के अनासिर चार हैं

गरचे इस बुनियाद-ए-हस्ती के अनासिर चार हैं

लेकिन अपने नीस्त हो जाने में सब नाचार हैं

दोस्ती और दुश्मनी है इन बुताँ की एक सी

चार दिन हैं मेहरबाँ तो चार दिन बेज़ार हैं

जी कोई मंसूर के जूँ जान करते हैं फ़िदा

वे सिपाही आशिक़ों की फ़ौज के सरदार हैं

ये जो सजती है कटारी-दार मशरू की इज़ार

मारने के वक़्त आशिक़ के नंगी तरवार हैं

दोस्ती और प्यार की बातों पे ख़ूबाँ की न भूल

शोख़ होते हैं निपट अय्यार किस के यार हैं

जो नशा ज्वानी का उतरेगा तो खींचेंगे ख़ुमार

अब तो ख़ूबाँ सब शराब-ए-हुस्न के सरशार हैं

किस तरह चश्मों सेती जारी न हो दरिया-ए-ख़ूँ

थल न पैरा 'आबरू' हम वार और वे पार हैं

(745) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Garche Is Buniyaad-e-hasti Ke Anasir Chaar Hain In Hindi By Famous Poet Abroo Shah Mubarak. Garche Is Buniyaad-e-hasti Ke Anasir Chaar Hain is written by Abroo Shah Mubarak. Complete Poem Garche Is Buniyaad-e-hasti Ke Anasir Chaar Hain in Hindi by Abroo Shah Mubarak. Download free Garche Is Buniyaad-e-hasti Ke Anasir Chaar Hain Poem for Youth in PDF. Garche Is Buniyaad-e-hasti Ke Anasir Chaar Hain is a Poem on Inspiration for young students. Share Garche Is Buniyaad-e-hasti Ke Anasir Chaar Hain with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.