आशिक़ बिपत के मारे रोते हुए जिधर जाँ
आशिक़ बिपत के मारे रोते हुए जिधर जाँ
पानी सीं उस तरफ़ की राहें तमाम भर जाँ
मर कर तिरे लबाँ की सुर्ख़ी के तईं न पहुँचे
हर चंद सई कर कर याक़ूत-ओ-ल'अल-ओ-मर्जां
जंगल के बीच वहशत घर में जफ़ा ओ कुल्फ़त
ऐ दिल बता कि तेरे मारे हम अब किधर जाँ
इक अर्ज़ सब सीं छुप कर करनी है हम कूँ तुम सीं
राज़ी हो गर कहो तो ख़ल्वत में आ के कर जाँ
(831) Peoples Rate This