Ghazals of Abroo Shah Mubarak (page 1)
नाम | आबरू शाह मुबारक |
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अंग्रेज़ी नाम | Abroo Shah Mubarak |
जन्म की तारीख | 1685 |
मौत की तिथि | 1733 |
जन्म स्थान | Delhi |
ज़िंदगानी सराब की सी तरह
ये तिरी दुश्नाम के पीछे हँसी गुलज़ार सी
ये सब्ज़ा और ये आब-ए-रवाँ और अब्र ये गहरा
ये बाव क्या फिरी कि तिरी लट पलट गई
यार रूठा है हम सें मनता नहिं
याद-ए-ख़ुदा कर बंदे यूँ नाहक़ उम्र कूँ खोना क्या
या सजन तर्क-ए-मुलाक़ात करो
उस ज़ुल्फ़-ए-जाँ कूँ सनम की बला कहो
तुम्हारी जब सीं आई हैं सजन दुखने को लाल अँखियाँ
तुम्हारे लोग कहते हैं कमर है
तूफ़ाँ है शैख़ क़हरिया है
तीरा-रंगों के हुआ हक़ में ये तप करना दवा
शौक़ बढ़ता है मिरे दिल का दिल-अफ़गारों के बीच
शब-ए-सियाह हुआ रोज़ ऐ सजन तुझ बिन
सरसों लगा के पाँव तलक दिल हुआ हूँ मैं
साँप सर मार अगर जो जावे मर
सैर-ए-बहार-ए-हुस्न ही अँखियों का काम जान
रता है अबरुवाँ पर हाथ अक्सर लावबाली का
रखे कोई इस तरह के लालची को कब तलक बहला
क़यामत राग ज़ालिम भाव काफ़िर गत है ऐ पन्ना
पलंग कूँ छोड़ ख़ाली गोद सीं जब उठ गया मीता
निपट ये माजरा यारो कड़ा है
निगह तेरी का इक ज़ख़्मी न तन्हा दिल हमारा है
नाज़नीं जब ख़िराम करते हैं
नालाँ हुआ है जल कर सीने में मन हमारा
नहीं घर में फ़लक के दिल-कुशाई
न पावे चाल तेरे की पियारे ये ढलक दरिया
मोहब्बत सेहर है यारो अगर हासिल हो यक-रूई
मत मेहर सेती हाथ में ले दिल हमारे कूँ
मत ग़ज़ब कर छोड़ दे ग़ुस्सा सजन