आबरू शाह मुबारक कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का आबरू शाह मुबारक (page 4)
नाम | आबरू शाह मुबारक |
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अंग्रेज़ी नाम | Abroo Shah Mubarak |
जन्म की तारीख | 1685 |
मौत की तिथि | 1733 |
जन्म स्थान | Delhi |
क़यामत राग ज़ालिम भाव काफ़िर गत है ऐ पन्ना
पलंग कूँ छोड़ ख़ाली गोद सीं जब उठ गया मीता
निपट ये माजरा यारो कड़ा है
निगह तेरी का इक ज़ख़्मी न तन्हा दिल हमारा है
नाज़नीं जब ख़िराम करते हैं
नालाँ हुआ है जल कर सीने में मन हमारा
नहीं घर में फ़लक के दिल-कुशाई
न पावे चाल तेरे की पियारे ये ढलक दरिया
मोहब्बत सेहर है यारो अगर हासिल हो यक-रूई
मत मेहर सेती हाथ में ले दिल हमारे कूँ
मत ग़ज़ब कर छोड़ दे ग़ुस्सा सजन
मगर तुम सीं हुआ है आश्ना दिल
क्यूँ मलामत इस क़दर करते हो बे-हासिल है ये
क्यूँ बंद सब खुले हैं क्यूँ चीर अटपटा है
क्या शोख़ अचपले हैं तेरे नयन ममोला
क्या बुरी तरह भौं मटकती है
कोयल नीं आ के कोक सुनाई बसंत रुत
किस की रखती हैं ये मजाल अँखियाँ
ख़ुर्शीद-रू के आगे हो नूर का सवाली
ख़ुदा के वास्ते ऐ यार हम सीं आ मिल जा
कनहय्या की तरह प्यारे तिरी अँखियाँ ये साँवरियाँ
कमाँ हुआ है क़द अबरू के गोशा-गीरों का
कहो तुम किस सबब रूठे हो प्यारे बे-गुनह हम सीं
कहें क्या तुम सूँ बे-दर्द लोगो किसी से जी का मरम न पाया
जलते थे तुम कूँ देख के ग़ैर अंजुमन में हम
जलते हैं और हम सीं जब माँगते हो प्याला
जाल में जिस के शौक़ आई है
इश्क़ है इख़्तियार का दुश्मन
इस ज़ुल्फ़-ए-जाँ-गुज़ा कूँ सनम की बला कहो
इंसान है तो किब्र सीं कहता है क्यूँ अना