क्या क्या धरे अजूबे हैं शहर-ए-ख़याल में
क्या क्या धरे अजूबे हैं शहर-ए-ख़याल में
बीते ख़ुशी से दिन तो कटे शब मलाल में
शायद कि शब की तह में है सूरज छुपा हुआ
शब लग रही है खोई सी दिन के जमाल में
कोई करे न ग़ौर तो उस का क़ुसूर है
इक इक जवाब वर्ना है इक इक सवाल में
कुछ मिलता-जुलता अक्स बुझाती तो है मगर
कब हू-ब-हू समाया है कोई मिसाल में
(792) Peoples Rate This