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किस का है जुर्म किस की ख़ता सोचना पड़ा - अबरार आज़मी कविता - Darsaal

किस का है जुर्म किस की ख़ता सोचना पड़ा

किस का है जुर्म किस की ख़ता सोचना पड़ा

रहते हैं क्यूँ वो हम से ख़फ़ा सोचना पड़ा

गुल की हँसी में रक़्स-ए-नुजूम-ओ-क़मर में भी

शामिल है कितनी तेरी अदा सोचना पड़ा

जब भी मिरी वफ़ाओं की बात आ गई कहीं

उन को फिर एक उज़्र-ए-जफ़ा सोचना पड़ा

ग़ुंचे उदास गुल हैं फ़सुर्दा चमन चमन

किस का करम है बाद-ए-सबा सोचना पड़ा

शायद तुम्हारी याद मिरे पास आ गई

या है मिरे ही दिल की सदा सोचना पड़ा

जब भी कोई भटक के सर-ए-राह आ गया

कितनी कठिन है राह-ए-वफ़ा सोचना पड़ा

ज़िंदाँ की बात दार के चर्चे रसन का ज़िक्र

कितनी अजब है तब-ए-रसा सोचना पड़ा

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