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ये भी तो कमाल हो गया है - अबरार अहमद कविता - Darsaal

ये भी तो कमाल हो गया है

ये भी तो कमाल हो गया है

ज़ाहिर वो जमाल हो गया है

जिस काम में हम ने हाथ डाला

वो काम मुहाल हो गया है

गुज़री हुई उम्र का हर इक पल

मिन्नत-कश-ए-हाल हो गया है

दिल कौन सा ताज़ा-दम था पहले

अब और निढाल हो गया है

कुछ रोज़ जो दिन फिरे हैं अपने

वो शामिल-ए-हाल हो गया है

जो ख़्वाब से ख़ून से कमाया

वो मुफ़्त का माल हो गया है

ये देख कि तेरे सामने कौन

सर-ता-पा सवाल हो गया है

ऐ ख़ौफ़-ए-ज़वाल तेरे हाथों

सब रू-ब-ज़वाल हो गया है

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