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इक फ़रामोश कहानी में रहा - अबरार अहमद कविता - Darsaal

इक फ़रामोश कहानी में रहा

इक फ़रामोश कहानी में रहा

मैं जो उस आँख के पानी में रहा

रुख़ से उड़ता हुआ वो रंग-ए-बहार

एक तस्वीर पुरानी में रहा

मैं कि मादूम रहा सूरत-ए-ख़्वाब

फिर किसी याद-दहानी में रहा

ढंग के एक ठिकाने के लिए

घर-का-घर नक़्ल-ए-मकानी में रहा

मैं ठहरता गया रफ़्ता रफ़्ता

और ये दिल अपनी रवानी में रहा

वो मिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा-ए-तलब

अहद-ए-रफ़्ता की निशानी में रहा

मैं कि हंगामा-ए-यक-ख़्वाब लिए

कोई दिन आलम-ए-फ़ानी में रहा

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