हैराँ नहीं हैं हम कि परेशाँ नहीं हैं हम

हैराँ नहीं हैं हम कि परेशाँ नहीं हैं हम

इस पर भी शाकी-ए-ग़म-ए-दौराँ नहीं हैं हम

शिकवा ज़बाँ पे लाएँ वो इंसाँ नहीं हैं हम

तेरे सितम-ब-ख़ैर परेशाँ नहीं हैं हम

ख़ाक अपनी ख़ाक-ए-कूचा-ए-जानाँ में जा मिली

एहसानमंद-ए-गोर-ए-ग़रीबाँ नहीं हैं हम

आँखों में अश्क दाग़ जिगर में लबों पे आह

सब कुछ है पास बे-सर-ओ-सामाँ नहीं हैं हम

गुलहा-ए-अश्क-ए-ख़ूँ से है दामन भरा हुआ

किस ने कहा कि ख़ुल्द-ब-दामाँ नहीं हैं हम

हम से गुरेज़ हम से ये बे-इ'तिनाइयाँ

ऐ दोस्त बुल-हवस का तो अरमाँ नहीं हैं हम

हसरत जो आ गई वो निकल ही नहीं सकी

वा हो सके जो 'अब्र' वो ज़िंदाँ नहीं हैं हम

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