चाँदनी रात है उदासी है

चाँदनी रात है उदासी है

कोई चाँदी हो मैल देती है

उस के डर ही से मैं मोहज़्ज़ब हूँ

मेरे अंदर जो एक वहशी है

शाम को रोज़ उस से मिलता हूँ

रात तन्हा उदास कटती है

लोग हँस-बोल कर चले भी गए

मेज़ पर चाय अब भी रक्खी है

ज़िंदगी यूँ भी ज़िंदगी ठहरी

कटते कटते भी देर लगती है

ज़ालिमो मुझ को देख लेने दो

ठहर जाओ ये उस की बस्ती है

आओ उन से भी मिल ही लें 'आबिद'

एक दुनिया तो हम ने देखी है

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